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असली बांदा क्या होता है? | बांदा क्या काम आता है? | बांदा कितने प्रकार का होता है? | नक्षत्रिय बांदा तंत्र क्या है? | What is a real Banda?

 

Banda

नक्षत्रीय बांदा-तंत्र

 जब एक वृक्ष पर दूसरे वृक्ष का पौधा उग जाता है, तो उसे बांदा कहते हैं। इस प्रकार के पौधे प्रायः चिड़िया आदि के मल (बीट) से उत्पन्न होते हैं। किसी चिड़िया ने बरगद का फल खाया और पीपल के वृक्ष पर बीट कर दी। उस बीट के कारण ही पीपल-वृक्ष पर बरगद का पौधा स्वतः उग आता है, जिसे बांदा कहा जाता है। तंत्र प्रयोग में इसे सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त है। निर्देशानुसार बांदा को विधिवत् निमंत्रण देकर, रवि पुष्य योग में लाएं और मंत्र द्वारा सिद्ध करके रख लें। आवश्यकता पड़ने पर बांदा का चमत्कारी लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
कुछ वृक्षों पर बांदा नहीं उगता। लेकिन जिन वृक्षों पर बांदा होने का उल्लेख ऋषियों ने किया है उन पर भी इसकी उपस्थिति दुर्लभ अथवा कल्पना मात्र ही प्रतीत होती है। उन सबका ज्ञान महर्षियों को न होता, तो वे उनका उल्लेख क्यों करते और जो कुछ लिखा गया है, वह केवल कल्पना अथवा मिथ्या पाखण्ड न होकर, महर्षियों के अध्ययन, अनुभव और दृष्टि-शक्ति पर आधारित है। इसलिए विश्वास बनाए रखकर, विधानानुसार बांदा का प्रयोग करें, लाभ अवश्य होगा।
रवि पुष्य योग में बांदा घर लाकर पूजा करें। पूजन के उपरांत निम्नलिखित मंत्र का दस हजार की संख्या में जप करें। मंत्र-जप के लिए 108 दानों की स्फटिक, मोती या शंख की माला प्रयुक्त करें। जप पूर्ण हो जाने पर, उसी मंत्र को पढ़ते हुए 108 आहुतियों से हवन करें। इस क्रिया से बांदा सिद्ध हो जाता है। कायिक-समृद्धि (स्वास्थ्य-आरोग्य) तथा आर्थिक-समृद्धि के मंत्र अलग-अलग हैं। जिस उद्देश्य के लिए जिस बांदा का प्रयोग किया जाना हो, उससे संबंधित मंत्र के जप से ही उसे अभिषिक्त करना चाहिए।
जैसा कि प्रारंभ में स्पष्ट किया जा चुका है, किसी भी साधना में मुहूर्त्त का महत्त्व सर्वाधिक है। मुहूर्त्त के अंतर्गत वार, तिथि, लग्न आदि आते हैं। इनमें नक्षत्र का प्रभाव सबसे अधिक है। अतः प्रत्येक तंत्र-साधना में नक्षत्र को वरीयता सबसे पहले देनी चाहिए। बांदा-तंत्र की साधना में तो महत्त्व ही नक्षत्र का है। अस्तु, नक्षत्र क्रम से बांदा की साधना और उसके प्रभाव व प्रयोग का उल्लेख निम्न रूप से किया जा रहा है। अब पहले कायिक और आर्थिक मंत्र के बारे में बताते हैं।


Banda

ॐ नमो भगवते रुद्राय मृतार्क मध्ये संस्थिताय मम शरीरं अमृतं कुरु
कुरु स्वाहा ।
आर्थिक समृद्धि का मंत्र
ॐ नमो धनदाय स्वाहा ।

विशेष—


आश्लेषा नक्षत्र में अष्टम शनि और मंगल की स्थिति हो, तो इस
मूहूर्त्त में अर्जुन-वृक्ष का बांदा लाकर, घर में किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करें, इसके साथ ही कमल की मूल व शतावर और अनार-इन तीनों का रस, मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके मिलाएं और अंजन तैयार करें। प्राचीन महर्षियों का मत है कि ऐसा अंजन लगाने वाले व्यक्ति को अकस्मात् गुप्तधन का पता चल जाता है।


Bel tree

नक्षत्रानुसार विविध बांदाओं का तंत्र प्रयोग


अश्विनी नक्षत्र – अश्विनी नक्षत्र वाले दिन बिल्व (बेल) का बांदा लाकर, उसे मंत्र से अभिषिक्त करें। ऐसा बांदा बाजू में धारण करने से अदृश्य होने की सिद्धि शीघ्र प्राप्त हो जाती है।


भरणी नक्षत्र – इस नक्षत्र में, विधिवत् कपास का बांदा लाकर धारण करने से अदृश्य होने की क्षमता प्राप्त हो जाती है।

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कृत्तिका नक्षत्र – इस नक्षत्र में थूहर-वृक्ष का बांदा लाकर, मंत्र द्वारा सिद्ध करके, दायीं भुजा पर बांध लेने से वाणी में अद्भुत प्रभाव स्वतः ही आ जाता है। अर्थात् वाक्सिद्धि प्राप्त हो जाती है। कृत्तिका नक्षत्र में ही कैथा-वृक्ष का बांदा लाकर, पूर्वोक्त विधि से सिद्ध करके, उसे मुंह में रखने वाला व्यक्ति शस्त्राघात से सदैव सुरक्षित रहता है।

Bar tree
रोहिणी नक्षत्र – यह नक्षत्र तंत्र-प्रयोगों और शुभ कार्यों के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। इस नक्षत्र वाले दिन विधिवत् वट-वृक्ष (बरगद) का बांदा लाकर, गले या भुजा में धारण करने से व्यक्ति सभी का समर्थन सहज ही प्राप्त कर लेता है। अर्थात् इस बांदा को धारण करने से वशीकरण का प्रभाव उत्पन्न होता है। इसका धारणकर्त्ता परिवार, पड़ौस और समाज से विरोध-भावना मिटाकर, सबका स्नेह, विश्वास और सहयोग प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होता है। यदि इसी नक्षत्र में गूलर का बांदा लाकर घर में स्थापित किया जाए, तो धन-धान्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।

मृगशिरा नक्षत्र – इस दिन गोखरू, आम और सिंघोट वृक्षों का बांदा लाकर, मंत्र से अभिषिक्त करके, गाय के दूध में तीनों को एक साथ पीसें और थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर, इसके लेप का मस्तक पर तिलक करके यदि अभीष्ट देवता की आराधना की जाए, तो साधक को ऐसी सिद्धि प्राप्त होती है, जिससे गुप्त धन (भूमि में यदि कहीं दबा हो) का पता लगाने में सहायता मिलती है। केवल सिंघोट का बांदा धारण करने से साधक में अदृश्य होने की क्षमता आ जाती है।


Imli tree
पुष्य नक्षत्र - इस नक्षत्र में इमली का बांदा लाकर घर में रखने से धन-
संपदा की वृद्धि होती है। इसको लाने से स्थापित करने तक की विधि पूर्ववत् है।

आश्लेषा नक्षत्र– सोमवार के दिन यदि आश्लेषा नक्षत्र आए, तो उस दिन बहेड़ा बांदा-तंत्र का बहुत उपयोगी और लाभकारी प्रयोग किया जा सकता है। रविवार की संध्या में उक्त बांदा को निमंत्रण देकर, सोमवार को प्रातः विधिपूर्वक घर लाना चाहिए। इसे पूजादि करके, घर में तिजोरी, रुपये की थैली तथा जेवरात के बक्स में रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है। यदि इसे दुकान के गल्ले में रख दिया जाए, तो गल्ला कभी खाली नहीं रहता, सदा भरा ही रहता है। आश्लेषा नक्षत्र में में ही अर्जुन-वृक्ष का बांदा लाकर, बकरी के मूत्र में घिसें और जिस स्त्री को वश में करना हो, उसके सिर पर डाल दें।

मघा नक्षत्र – इस नक्षत्र में हारसिंगार के वृक्ष पर उत्पन्न बांदा विधिवत् लाकर पूजनोपरांत घर में स्थापित करने से श्रीसंपदा की वृद्धि होती है।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र – इस नक्षत्र में बहेड़ा-वृक्ष का बांदा लाकर, उसे
विधिवत् मंत्र द्वारा सिद्ध करके पीस लें। यह बांदा भूत-प्रेत बाधा नाशक होता है। इसलिए जहां भी इसकी आवश्यकता हो, प्रयोग करें।

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र — आम का बांदा इस नक्षत्र में लाकर, कवच में
भरकर, भुजा पर धारण करने से दाम्पत्य जीवन प्रेममय रहता है। जीवन में बहारें आ जाती हैं। जिन पति-पत्नी में असंतोष, तनाव या मतभेद हो, उन्हें यह कवच अवश्य धारण करना चाहिए।

Nirgundi tree
हस्त नक्षत्र – निर्गुण्डी पौधे की डालों पर उत्पन्न बांदा हस्त नक्षत्र में
लाकऱ, विधिवत् घर में स्थापित करने से श्रीसंपदा और धन-धान्य की वृद्धि होती है।

चित्रा नक्षत्र – धावड़ी-वृक्ष का बांदा इस नक्षत्र में लाया जाता है, जो प्रेम और प्रभाव की वृद्धि करता है। ऐसा बांदा सिद्ध कर लेने के बाद शुद्ध पान में डालकर खिलाया जाता है। जिस स्त्री या पुरुष को भी यह बांदा पान में खिला दिया जाएगा, वो ही प्रेम करने को बाध्य हो जाएगा।

स्वाति नक्षत्र – इस नक्षत्र में हरड़-वृक्ष, का बांदा सिद्ध करके कमर, बाजू में धारण करने या जेब में रखकर जहां भी जाएंगे, भारी सम्मान मिलेगा। जहां सम्मान की आशा न होगी, वहां से भी मिलने वाले सम्मान को कोई रोक नहीं पाएगा। यह अत्यंत प्रभावशाली होता है। स्वाति नक्षत्र में ही बेर का बांदा लाने का भी विधान है। ऐसे बांदा को विधिवत् लाएं और उसे सिद्ध करके दाहिनी भुजा पर बांधें। यह प्रयोग अभीष्ट-पूर्ति में सहायक होता है और साधक को उसकी मनोवांछित वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं। स्वाति नक्षत्र में ही लाया गया और सिद्ध किया नीम का बांदा अदृश्यीकरण की शक्ति रखता है। इसको भुजा पर धारण करने वाला व्यक्ति दूसरों की दृष्टि से लुप्त रहता है।

विशाखा नक्षत्र – महुए का बांदा इस नक्षत्र में प्राप्त और सिद्ध करके
मस्तक पर धारण किया जाए, तो साधक की शारीरिक-शक्ति में वृद्धि होती है।

Kanyare tree
अनुराधा नक्षत्र – इस नक्षत्र कनेर का बांदा लाकर, उसे मंत्राभिषिक्त
करके दाहिने बाजू पर धारण करने से शत्रु और विरोधीजन शांत हो जाते हैं तथा इसी नक्षत्र में रोहित-वृक्ष का बांदा प्राप्त करके, उसे विधिवत् सिद्ध करके, मुख में धारण करने वाला साधक दूसरों की दृष्टि से अदृश्य हो जाता है।

विशेष – 

सामान्य रूप से अदृश्य हो जाना अविश्वसनीय प्रतीत होता है, शास्त्रों में इसका जिस प्रकार उल्लेख मिलता है, उसे वैसे ही यहां लिख दिया गया है।

ज्येष्ठा नक्षत्र–अनार-वृक्ष पर उत्पन्न बांदा इस नक्षत्र में लाकर, मंत्र द्वारा उसे सिद्ध करके, मकान के मुख्य द्वार पर यदि बांध दिया जाए, तो परिवार के छोटों, बच्चों पर व्याप्त ग्रह-प्रकोप शांत हो जाता है। दुष्ट-ग्रहों के को यह तत्काल दूर कर देता है।

मूल नक्षत्र – खजूर के वृक्ष पर उत्पन्न बांदा मूल नक्षत्र में प्राप्त करके तथा सिद्ध करके, जो व्यक्ति उसे अपने दाएं बाजू पर धारण करता है, वह शत्रुंजयी हो जाता है। शत्रु को परास्त करने में यह बांदा बहुत लाभकारी रहता है।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र – पुरवा नामक एक वृक्ष होता है, जिस पर एक प्रकार का बांदा स्वत: उग जाता है । इस नक्षत्र में उस बांदा को प्राप्त कर, विधिपूर्वक उसे दाहिने बाजू पर धारण कर लिया जाए, तो व्यापार में आश्चर्यजनक तेजी आ जाती है।

bel tree
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र – इस नक्षत्र में बेल अथवा अशोक-वृक्ष पर उत्पन्न बांदा विधिवत् लाकर और मंत्र द्वारा अभिषिक्त करके शरीर पर धारण कर लिया जाए, तो साधक में अदृश्य होने की शक्ति आ जाती है।

शतभिषा नक्षत्र– पूंगीफल (सुपारी) के वृक्ष पर उत्पन्न बांदा शतभिषा नक्षत्र में लाकर, मंत्राभिषिक्त करके रख लिया जाए। जब भी आवश्यकता पड़े, उसका प्रयोग करें। इस बांदा को गाय के दूध में पीसकर सेवन करने से वृद्धावस्था से रक्षा होती है। शरीर की सहन-शक्ति के अनुसार ही इसका उपयोग करना चाहिए।

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